A human, who cultivates dualistic liaison with the action, begets in him Habitual Inertia or Sanskaar in the form of memory of that action. The said Habitual Inertia or Sanskaar becomes Chittavritti in him. A human, having a Chittavritti in his Chitta in the form of memories of past actions, owes debt to Mother Nature proportionate to the encumbrance of those past actions and becomes reduced to a machine being controlled by the outer forces. The machine can neither have destiny nor choice of selecting an action, it is completely subject to the accidents, planned and implemented by the outer forces, popularly known as Mother Nature.
Every loss and gain that is caused to a human that alone is, as a tradition regarded as his destiny. It is an event taking place in the life of a human that becomes instrumental in causing loss or gain to him. It is present state of understanding in a human that works in him as a decision making faculty and decides for him whether to undertake or not to undertake a particular event. But the decision making faculty of a person having Chittavritti in him, becomes completely controlled by the said Chittavritti of a person and the person gets reduced to a mere machine in the hands of the Nature. The same is called the System of Nature that authorizes Mother Nature to manipulate the decision making faculty of that person and the Nature compels that person for taking a decision for undertaking that action only, which potentially causes him such loss or gain that is proportionate to the encumbrance of his past actions and thereby the Nature delivers to him the Karmafal of his past actions according to the Law of Karma.
We saw that it is present state of understanding in a human that works in him as a decision making faculty for him; but irony of fate of human is he has pile and pile of information in him but no understanding, and as long as man remains in his same present state, there is no chance for him to increase his understanding, and hence there cannot be anything like destiny for him. The human can always have understanding proportionate only to the state of his “Being”, and unless he upgrades the state of his “Being” through the way of inner mutation, he cannot have more understanding. The only way for the inner mutation is the earnestness that the seeker has to cultivate in him. The earnestness means an instinct to return to source. A human with a life that has assimilation of virtues like: Straightforwardness, Innocence, Effortlessness and Sinlessness (SIES) in it, is a human at a source. The virtues are the byproduct of a life that invariably is being lived with practice of nonduality only. When a human sees himself in aggregate of all created things and beings, whether animate or inanimate and sees in himself them all, then it is a state of nonduality in him, because now there is none other than the seeker in the entire universe, he alone is pervading and illumining in all them and everywhere. Therefore we can say that Nonduality, Virtue, Knowledge, Parmatma, Bliss and Truth are synonyms of one and only entity, the Existence. We at Veda Vichar Ashram, Rajkot, inculcate in seekers a way of life that has invariably a practice on Nonduality in it; and according to us it is the only Sadhnaa that needs be undertaken in spirituality, there cannot be any other Sadhnaa in sprituality.
WE OFFER:
(1) The prime concern of Ashram is to Awake the potential seekers, help them Enlighten and avail them Realisation of Salvation.
(2) We portray a road map for seekers’ inner spiritual journey, and mitigate their impediments if they counter any impediment on their way to Sadhnaa of Realisation of truth.
(3) We help the persons overcome the depression they counter in their life.
(4) We help the persons overcome almost all sort of psychological problems related to any aspect of their life.
(5) We help the potential seekers have their meeting eternally fixed with the Bliss that is always waiting for the arrival of the seeker.
(6) We teach the seeker the Vedic way of genuine Meditation as a result of which his countenance starts shining and the seeker gets rested in his Consciousness.
(7) We help seekers attain mental peace by curing their many mental disorders through the way of practice of Kriya Yoga.
(8) We teach seekers genuine way of Ashtanga Yoga propounded by Bhagvan Patanjali, which may help the genuine seekers have all the Eight Siddhis.
(9) We invariably help the genuine Seekers Awake the Kundalini and ascertain Her travel to Sahastraar Chakra.
(10) We help solve almost all sort of problems related to practice of spirituality and spiritual development.
हमारे बारे में
जो मानव, क्रिया के साथ द्वन्द्वात्मकभाव बना लेता है, वह उस क्रिया की स्मृति के रूप में अपने मे अभ्यस्त जड़ता या संस्कार को पैदा कर लेता है। उक्त अभ्यस्त जड़ता या संस्कार उसमें चित्तवृत्ति बन जाती है।जिस मानव में अपने अतीत के कार्यों की यादों के रूप में अपने चित्त में चित्तवृत्ति होती है, वह उन अतीत के कार्यों के बोझ के सप्रमाण में माँ प्रकृति का ऋणी रहता है; और वह बाहरी ताकतों द्वारा नियंत्रित की जा रही मशीन के रुपमें सिमट कर रह जाता है।मशीन को न तो भाग्य हो सकता है और न ही कार्रवाई की पसंदगी का विकल्प, वह पूरी तरह से बाहरी शक्तियों, जिसे लोकप्रिय रूप से माँ प्रकृति के रूप में जाना जाता है; उसके द्वारा नियोजित और कार्यान्वित कि जा रही दुर्घटनाओं के अधीन होता है।
प्रत्येक नुकसान और लाभ जो मानव को होता है, इसे ही एक परंपरा के रूप में उसकी नियति माना जाता है।यह मनुष्य के जीवन में घटित हो रही एक घटना ही होती है, जो उसे नुकसान या लाभ दिलाने में निमित्त बनती है।यह मानव में रही उसकी समझ की वर्तमान अवस्था होती है जो उसमें निर्णय लेने वाले संकाय के रूप में काम करती है और उसके लिए निर्णय लेती है कि किसी विशेष घटना को किया जाय या नहीं।लेकिन जिस किसी व्यक्ति में चित्तवृत्ती होती है, उसका निर्णय लेने वाला संकाय पूर्णरूपेण उसके अंदर रही चित्तवृत्ती के द्वारा नियंत्रित होता है; और व्यक्ति प्रकृति के हाथों में केवल मशीन बनकर सिमट जाता है। इसीको प्रकृति में रहा प्रकृति का कार्यप्रणालीतंत्र कहा जाता है जो माँ प्रकृति को उस व्यक्ति में रहे निर्णय लेने वाले संकाय में तोड़-मरोड़ करने के लिए अधिकृत करता है और प्रकृति उसे केवल उस कार्य को करने का निर्णय लेने के लिए मजबूर करती है, जिससे संभावित रूप से उसे ऐसा नुकसान या लाभ होता है जो उसके पिछले कर्मों के बोझ के अनुपात में होता है।और इस प्रकार प्रकृति उसे कर्म के कानून के अनुसार उसके पिछले कर्मों का कर्मफल मुहैया कराती है।
हमने देखा कि यह मानव में रही समझ की अवस्था है जो उसके लिए एक निर्णय लेने वाले संकाय के रूप में काम करती है; लेकिन मानव के भाग्य की विडंबना यह है कि उसके पास माहिती का ढेर और ढेर है लेकिन कोई समझ नहीं है, और जब तक मनुष्य अपनी उसी वर्तमान अवस्था में रहता है, उसके लिए अपनी समझ बढ़ाने का कोई मौका नहीं है, और इसलिए उसके लिए भाग्य जैसा कुछ भी नहीं हो सकता है।मानव में हमेशा अपने “होने” की अवस्था के अनुपात में ही समझ हो सकती है, और जब तक वह अपने “होने” की अवस्था को आंतरिक स्थितिभेद के माध्यम से उन्नत नहीं कर लेता है, तब तक उसे अधिक समझ नहीं हो सकती है।आंतरिक स्थितिभेद के लिए का एकमात्र रास्ता वह तत्परता है जिसे साधक को अपने अंदर बना लेनी है।तत्परता का मतलब होता है, घरवापसी की सहज वृत्ति।एक ऐसा जीवन जिसमें सरलता, निर्दोषता, सादगी और निष्पापता (सनिसानि) आदि सद्गुणों आत्मसात हुए है: वह घर पर रहा मानव है।सद्गुणों ऐसे जीवन के उपोत्पाद हैं, जो हमेशा निरपवादरुपसे अद्वैत के आचरण के साथ ही जिया जाता हैं।जब मानव अपने को सभी निर्मित वस्तुओं और प्राणियों, चाहे वे चेतन हो या निर्जीव हो, उसके समुच्चय में देखता है, और उन सभी को स्वयं में देखता है, तो यह उसके अंदर एक अद्वैत की अवस्था है, क्योंकि अब पूरे ब्रह्मांड में उस साधक के अलावा दुसरा कोई नहीं है, वह अकेला हर जगह व्याप्त है और उन सभी में रोशन हो रहा है।इसलिए हम कह सकते हैं कि अद्वैत, सद्गुण, ज्ञान, परमात्मा, आनंद और सत्य केवल एक और वही इकाई, अस्तित्व का पर्यायवाची हैं।हम वेद विचार आश्रम राजकोट, एक ऐसी जीवनप्रणालि साधकों के मन में बैठाते है, जो निश्चित रूप से उसमें अद्वैत का आचरण कराती है; और हमारे अनुसार यही एकमात्र साधना है जिसे आध्यात्मिकता में करने की आवश्यकता है, आध्यात्मिकता में अन्य कोई साधना नहीं हो सकती है।
हम प्रदान करते हैं:
(1) आश्रम का प्रमुख वास्ता संभावित साधकों को जागृत करना, उन्हें प्रबुद्धता प्राप्त करने में मदद करना और उन्हें मोक्ष का साक्षात्कार कराना है।
(2) हम साधकों की आंतरिक आध्यात्मिक यात्रा के लिए एक रोड मैप को चित्रित करते हैं, और यदि वे सत्य के साक्षात्कार की साधना में किसी भी तरह की बाधाओं का मुकाबला करते हैं, तो उन बाधाओं का शमन करते हैं।
(3) हम उन लोगों की मदद करते हैं जो अपने जीवन में अवसाद से उबरते हैं।
(4) हम व्यक्तियों को उनके जीवन के किसी भी पहलू से संबंधित लगभग सभी प्रकार की मनोवैज्ञानिक समस्याओं को दूर करने में मदद करते हैं।
(5) हम संभावित साधकों की मुलाक़ात उस आनंद के साथ सदा के लिए तय करने मे मदद करते हैं जो हमेशा साधक के आने के प्रतीक्षा में होता हैं।
(6) हम साधक को यथार्थ ध्यान के वैदिक तरीके को सिखाते हैं जिसके परिणामस्वरूप साधक का मुखारविंद चमकने लगता है और साधक अपनी चेतना में विश्रामित हो जाता है।
(7) हम क्रिया योग के अभ्यास के माध्यम से साधकों को उनके कई मानसिक विकारों का इलाज करके उनको मानसिक शांति प्राप्त करने में मदद करते हैं।
(8) हम साधकों को भगवान पतंजलि द्वारा प्रतिपादित अष्टांग योग का वास्तविक तरीका सिखाते हैं, जिससे वास्तविक साधकों को सभी आठ सिद्धियाँ प्राप्त हो सकती है।
(9) हम कुंडलिनी जागृत करने और सहस्त्रार चक्र तक उनकी यात्रा कराने में वास्तविक साधकों को निश्चितरुपसे मदद करते हैं।
(10) हम आध्यात्मिकता और आध्यात्मिक विकास की साधना से संबंधित लगभग सभी प्रकार की समस्याओं को हल करने में मदद करते हैं।