श्री पातंजलयोगदर्शन।
योगेन चित्तस्य पदेन वाचां मलं शरीरस्य च वैद्यकेन।
योऽपाकरोत्तं प्रवरं मुनीनां पतंजलिं प्रांजलिरानतोऽस्मि।।
(जिसने चित्तका मल योगशास्त्रसे, वाणीका मल (पाणिनिमुनिके सूत्रोंपरके महाभाष्यरुप) पदशास्त्रसे और शरीरके मल चरक नामके वैद्यग्रंथसे दूर किये है, वह मुनिओंमें श्रेष्ठ भगवान पतंजलिको मैं दोनों हाथ जोड़कर नमा हुआ हुँ।)
द्वापरमें जन्मे। माता गोणिका और पिता अंगी नामक थे। सूर्यको अंजलि देते हुए हाथसे पुत्र पड़ा इसलिये पतंजलि। जन्मकेबाद तप करने चले गये। महेश्वरके प्रसादसे महाभाष्य, योगसूत्रों, चरकनामक वैद्यशास्त्रकी रचनी की।
दूसरी मान्यतानुसार पाणिनिमुनि उनके पिता थे। और सायंको सूर्यको अर्ध्य देते अंजलिमेंसे सर्पका बच्चा नीचे पड़ा तो पाणिनिमुनि बोले:
पिता: को भवान? की जगह कोर्भवान?
बालक: सर्पोऽहम की जगह सपोहम कहा
पिता: रेफ: कुत्र गत:।
पुत्र: त्वया ह्रृत:।
हिरण्यगर्भो योगस्य वक़्ता नान्य: पुरातन:।।
(योगका पुरातन वक़्ता हिरण्यगर्भ है, अन्य कोइ नहीं।).
वृत्तय: विषयसम्बन्धात् चित्तस्य परिणामविशेषा:।
अथ योगानुशासनम्। (पातंजलयोगदर्शन1/1)
योगश्चित्तवृत्तिनिरोध:। (पातंजलयोगदर्शन-1/2)
(चित्तकी वृत्तिका (संपूर्ण) निरोध (ही) परमात्मा के साथ एक होना (योग) है।)(पातंजलयोगदर्शन-1/2)।
(The (complete) inhibition of Chittavritti (itself) is becoming one with Parmatma). (Patanjal Yogadarshan-1/2).
तदा द्रष्टु: स्वरुपेऽवस्थानम्।(पातंजलयोगदर्शन-1/3)
((जब चित्त निरुद्ध हो जाता है) तब द्रष्टाकी स्वरुपमें स्थिति (होती है).
वृत्तिसारुप्यमितरत्र। (पातंजलयोगदर्शन-1/4)
((जब चित्त निरुद्ध नहीं होता है तब जीवात्माकी) वृत्तिके साथ एकरूपता प्रतीत होती है।)
वृतय: पंचतय्य: क्लिष्टाक्लिष्टा:।। (पातंजलयोगदर्शन-1/5)(सांख्यशास्त्र-2/33)
(वृतियां पाँच प्रकारकी है, वे क्लिष्ट तथा अक्लिष्टरुप है)
वृत्ति: विषयसम्बन्धात् चित्तस्य परिणाम विशेष:। विषयके साथ संबंध होनेसे चित्तमें जो परिणाम विशेष स्थिति पेदा हो जाती है, उसको वृत्ति कहा जाता है।
प्रमाणविपर्ययविकल्पनिद्रास्मृतय:।।
(पातंजलयोगदर्शन-1/6)
(प्रमाण, विपर्यय (मिथ्याज्ञान), विकल्प, निद्रा और स्मृति (यह वृतियोंके प्रकार है)
विपर्ययो मिथ्याज्ञानमतद्रुपप्रतिष्ठिम्।।(पातंजलयोगदर्शन-1/8)
(जिस रुपमें प्रथम दिखता है) वैसे ही रुपमें जो (बादमें) नहीं रहता है, (ऐसा) विपर्यय मिथ्याज्ञान है।
शब्दज्ञानानुपाती वस्तुशून्यो विकल्प:।।(पातंजलयोगदर्शन-1/9)
(शब्द के ज्ञान परसे इस (द्वैत) का होने का भास उत्पन्न होता है, (लेकिन तुरंत) प्रतीत हो जाता है के ऐसा कुछ भी नहीं है, वह विकल्प (द्वैत) है।) (पातंजलयोगदर्शन-1/9)
[From the phrasing of the words, (the duality) sounds to be, but soon manifests that nothing is like that, it is called Vikalpa (Duality). (Patanjal Yogadarshan-1/9).
अनुभूतविषयासंप्रमोष: स्मृति:।।
(पातंजलयोगदर्शन-1/11)
(विषय की अनुभूति के प्रभाव को (संस्कार के रुप में) ग्रहण करके रखने की क्रिया को स्मृति कहते है।) (पातंजलयोगदर्शन-1/11)
(The act of capturing the impression of experiencing of a subject (in the form of Habitual Inertia or Sanskaar) is called Memory.) (Patanjal Yogadarshan-1/11).
अभ्यासवैराग्याभ्यां तन्निरोध:। (पातंजलयोगदर्शन-1/12)
(अभ्यास और वैराग्य से उन
(पाँचो वृतियों)का निरोध होता है।)
(वृतियां इस प्रकार है: प्रमाण, विपर्यय, विकल्प, निद्रा और स्मृति)
तत्र स्थितौ यत्नोऽभ्यास:। (पातंजलयोगदर्शन-1/13)
(उस (निरोध) की स्थिति बनी रहे, उसका जो प्रयत्न है, उसको अभ्यास कहते है।)
(वहाँ (स्वस्वरुपमें द्रष्टाकी) स्थिति बनाये रखनेका प्रयत्न अभ्यास है।)
स तु दीर्घकालनैरन्तर्यसत्कारसेवितो द्रढभूमि:।। (पातंजलयोगदर्शन-1/14)
(वह (अभ्यास) तो दीर्घकालतक निरंतर आदरपूर्वक सेवन करनेसे ही द्रढ होता है।)
दृष्टानुश्रविकविषयवितृष्णस्य वशिकारसंज्ञा वैराग्यम्।। (पातंजलयोगदर्शन-1/15)
(जो दृष्ट और श्रवण (आदि) विषयोंमें (चित्तकी) रागरहित स्थिति है, (उनको और इन्द्रियों पर) वशिकरण जैसी स्थितिको वैराग्य कहते है।)
ईश्वरप्रणिधानाद्वा।। (पातंजलयोगदर्शन-1/23)
(ईश्वरप्रणिधानसे (ईश्वरकी भक्तिविशेषसे) भी (समाधिलाभ तिव्रतासे होता है।)
क्लेशकर्मविपाकाशयैरपरामृष्ट: पुरुषविशेष ईश्वर:।। (पातंजलयोगदर्शन-1/24)
(जीस पुरुषविशेषमें क्लेश (अविद्या, अस्मिता, राग, द्वेष और अभिनिवेश), कर्म (धर्माधर्म रुप), विपाक (कर्मफल: जाति, आयुष्य और भोग) और आशय (जिस में संस्कार आश्रित होकर रहता होनेके कारण, जिसको कर्मफल मिलना निश्चित हि है वैसा चित्त) का संसर्ग नहीं है, वह ईश्वर है।)
पूर्वेषामपि गुरु: कालेनानवच्छेदात्।।(पातंजलयोगदर्शन-1/26)
कालसे अनादि होनेके कारण (ईश्वर ब्रह्मा, विष्णु, महेश आदि) पूर्वों के भी गुरु है।
तस्य वाचक: प्रणव:। (पातंजलयोगदर्शन-1/27)
(ॐ वह (ईश्वर)का वाचक (शब्द) है।)
तज्जपस्तदर्थभावनम्। (पातंजलयोगदर्शन-1/28)
(उस (प्रणव) का जप और उसका ध्यान करना (ईश्वर प्रणिधान) है।)
तत: प्रत्यक्चेतनाधिगमोऽप्यन्तरायाभावश्च।।((पातंजलयोगदर्शन-1/29)
(वह (प्रणवके जप और ध्यानसे) ब्रह्मका साक्षात्कार और अंतरायोंका अभाव भी होता है।)
मैत्रीकरुणामुदितोपेक्षाणां सुखदु:खपुण्यापुण्यविषयाणां भावनातश्चित्तप्रसादनम्। (पातंजलयोगदर्शन-1/33)
(साधकको चाहिये की वह सुखीमें मैत्रीकी, दु:खीमें करुणाकी, पुण्यवानमें हर्षकी और पापीमें उपेक्षाकी भावना करके चित्तकी प्रसन्नता बनाके(चित्तके दोषोंकी निवृत्तिके उपाय करे)।)
विषयवती वा प्रवृत्तिरुत्पन्ना मनस: स्थितिनिबंधिनी।। (पातंजलयोगदर्शन-1/35)
(विषयमें एकाग्र और प्रवृत्तिजनित चित्त स्थितिमें स्थिरता लाता है।)(योग: कर्मेषु कौशलम्।)
यथाभिमतध्यानाद्वा।। (पातंजलयोगदर्शन-1/39)
(अथवा जो इष्टदेव है, उसके ध्यानसे भी (चित्त स्थिर होता है।)
तज्ज: संस्कारोऽन्यसंस्कारप्रतिबन्धि।। (पातंजलयोगदर्शन-1/50)
(उस (निर्विचारसमाधि) से उत्पन्न संस्कार अन्य (व्युत्थानके) संस्कारका प्रतिबन्धक (होता) है।)
तप: स्वाध्यायेश्वरप्रणिधानानि क्रियायोग:। (पातंजलयोगदर्शन-2/1)
(तप, स्वाध्याय और ईश्वरप्रणिधान वह क्रियायोग है।)
समाधिभावनार्थ: क्लेशतनूकरणार्थश्च।। (पातंजलयोगदर्शन-2/2)
((क्रियायोग) समाधिकी भावनाके लिये तथा क्लेशको शिथिल करनेके लिये है।)
अविद्यास्मितारागद्वेषाभिनिवेशा: पंच क्लेशा:। (पातंजलयोगदर्शन-2/3)
अविद्या, अस्मिता (अहंकारयुक्त बुद्धि), राग, द्वेष और अभिनिवेश (मृत्युका भय) यह पाँच क्लेश है।)
ક્લેશો પોતુોતાની વૃત્તિઓને પામીને દ્દષ્ટાદ્દષ્ટહેતુવડે સત્ત્વાદિ ગુણોના કાર્ય કરવાના સામર્થ્યને બલવાન કરેછે, તથા ઊત્પત્તિના કારણભૂત ગુણોના વિષમપણારુપ પરિણામને સિદ્ધ કરેછે, તેથી મહદાદિરુપ કાર્યકારણરુપ પ્રવાહ ચાલુ થઈ જાય છે, તેથી અવિદ્યાદિનું ક્લેશ એ તાંત્રિક નામ યોગ્ય જ છે.
अनित्याशुचिदु:खानात्मसु नित्यशुचिसुखात्मख्यातिरविद्या।। (पातंजलयोगदर्शन-2/5)
(अनित्य, अपवित्र, दु:ख और अनात्ममें (क्रमानुसार) नित्य, पवित्र, सुख और आत्माकी भावना करनी वह अविद्या है।)
दृग्दर्शनशक्त्योरेकात्मतेवास्मिता। (पातंजलयोगदर्शन-2/6)
दृग्दर्शनशक्त्यो: एकात्मता इव अस्मिता।
(द्दक् शक्ति (पुरुष, आत्मा) और दर्शन शक्ति (सात्विक अत:करण, बुद्धि) में एकरुपात्मक भ्रांतिको अस्मिता कहते है।)
(दृष्टा (आत्मा) और दृश्य (देह) में (जो) एकरुपात्मक (होनेकी) भ्रांति (दिखती है, उन) को अस्मिता कहते है।)
सुखानुशयी राग:। (पातंजलयोगदर्शन-2/7)
(सुख है ऐसा समजनेवाली (चित्तवृत्ति) राग है।)
ते प्रतिप्रसवहेया: सूक्ष्मा:।।(पातंजलयोगदर्शन-2/10)
जो सूक्ष्म हुए (क्लेशों है, वे (चित्त के) प्रलय द्वारा लय होते है।
ध्यानहेयास्तद्वृत्तय:।।(पातंजलयोगदर्शन-2/11)
उस (क्लेशों) की वृत्तियाँ को ध्यानद्वारा निवृत्त करनी होती है।
क्लेशमूल: कर्माशयो दृष्टादृष्टजन्मवेदनीय:।। (पातंजलयोगदर्शन-2/12)
(द्वैत हि संस्कारका मूल है जीसे (कर्मफल के रुपमें) इस जन्ममें या बादके जन्मोंमें भुगतना पड़ता है।)
(The duality, is the root cause of Habitual Inertia or Sanskaar, which need to be undergone ( in the form of Karmafal) either in present life or in the future lives).
(Patanjal Yogadarshana-2/12)
सति मूले तद्विपाको जात्यायुर्भोगा:। (पातंजलयोगदर्शन-2/13)
(अगर (द्वैत रुप) मूल बचता है, तो उसका कर्मफल जाति, आयु और भोग के रुपमें अवश्य है।) (पातंजलयोगदर्शन-2/13)
(If the root (in the form of duality) survives, then there also is its fructification in the form of Specie, Longevity and Usufruct)
(Patanjal Yogadarshana-2/13).
हेयं दु:खमनागतम्।। (पातंजलयोगदर्शन-2/16)
(भविष्यका दु:ख त्याजने योग्य है)
वर्तमान समाधि है, संसार भविष्य है। संसार दु:ख है।
द्रष्टृदृश्ययो: संयोगो हेयहेतु:।। (पातंजलयोगदर्शन-2/17)
(दृष्टा (चित्तस्वभाव) और दृश्य (जगत) का जो (भ्रांतिरुप) संयोग (दिखता) है, वह दु:ख का कारण है।)
प्रकाशक्रियास्थितिशीलं भूतेन्द्रियात्मक भोगापवर्गार्थं द्दश्यम्।।(पातंजलयोगदर्शन-2/18)
[प्रकाश (सत्त्व), क्रिया (रजस) और स्थिति (तमस) स्वरुप स्वभाववाली दृश्य सृष्टि जो (आकाश, वायु, तेज़, जल और पृथ्वि ऐसे पाँच) भूतों के पदार्थों से और (प्राणिओंके शरीरों व) इन्द्रियों बनी है, वह (अज्ञानी के) भोग के लिए (और ज्ञानी के) मोक्ष के लिए है।] (पातंजलयोगदर्शन-2/18)
[The visible Creation that has inherent nature of Illumination (Sattva), Activity (Rajas) and Inertia (Tamas); which is made of substances of (five) basic elements (sky, air, fire, water and earth) and also of sense organs (and bodies of the animals); is meant for the usufruct (of ignorant) and for the Salvation (of erudite)] (Patanjal Yogadarshan-2/18).
विशेषाविशेषलिंगमात्रालिंगानि गुणपर्वाणि।।(पातंजलयोगदर्शन-2/19)
(विशेषो (विकारों: पाँच महाभूत, पाँच ज्ञानेन्द्रिय, पाँच कर्मेन्द्रिय और मन), अविशेषो (पाँच तन्मात्रा और अहंकार), लिंग (महत्तत्त्व), अलिंग (मूल प्रकृति वा माया वा साम्यावस्था), यह सब गुणोंकी अवस्था विशेष ही है।)
द्रष्टा दृशिमात्र: शुद्धोऽपि प्रत्ययानुपश्य:।(पातंजलयोगदर्शन-2/20)
[आत्मा चैतन्यरुप ही है। शुद्ध होनेपर भी बुद्धिवृत्ति के साथ साथ वह भी उसे देखता है (ऐसा मान लेता है।)]
[Atmaa itself is Consciousness. Though being absolute, (mistakenly believes that) it also simultaneously sees that what the Intelligence sees]
तदर्थ एव दृश्यस्यात्मा।।(पातंजलयोगदर्शन-2/21)
उस (द्दृष्टा) के (भोगापवर्ग के) लिए ही द्दश्य (सृष्टि) का स्वरुप है।
कृतार्थं प्रति नष्टमप्यनष्टं तदन्यसाधारणत्वात्।। (पातंजलयोगदर्शन-2/22)
(तत्त्वज्ञानीके प्रति जगत (दृश्य) नष्ट हो जानेपर भी अविद्यायुक्तके प्रति अनष्ट रहता है।)
(જાગીને જોઉંતો જગત દિસે નહી )
स्वस्वामिशक्त्यो: स्वरुपोपलब्धिहेतु: संयोग:।। (पातंजलयोगदर्शन-2/23)
(दृष्टा (पुरुष) और दृश्य (प्रकृति) का (जो) संयोग (जुड़ना दिखता) है, उनका हेतु स्वस्वरुपकी उपलब्धि (मोक्ष प्राप्त) कराना है।)
तस्य हेतुरविद्या।। (पातंजलयोगदर्शन-2/24)
(यह जो दृष्टा (आत्मा) और दृश्य (बुद्धि) का संयोग दिखता है,) उसका कारण अविद्या है।)
तदभावात्संयोगाभावो हानं तद् दृशे: कैवल्यम्।। (पातंजलयोगदर्शन-2/25)
उस (अविद्या) के विनाशसे (भ्रांतिरुप) संयोगकाभी विनाश (होता है)। वही हान (मोक्ष) है और वही पुरुषका कैवल्य भी है।)
विवेकख्यातिरविप्लवा हानोपाय।। (पातंजलयोगदर्शन-2/26)
(मिथ्याज्ञानरहित विवेकख्यति (से अविद्याका नाश होता है और यही) हान (कैवल्यका) उपाय है।)
योगांगानुष्ठानादशुद्धिक्षये ज्ञानदिप्तिराविवेकख्याते:।। (पातंजलयोगदर्शन-2/28)
(योगके (आठ) अंगोके अनुष्ठानसे अशुद्धियोंका क्षय हो जानेसे विवेकख्याति होनेतक ज्ञानका प्रकाश (मार्गदर्शककेरुपमें रहता है।))
वितर्कबाधने प्रतिपक्षभावनम्।। (पातंजलयोगदर्शन-2/33)
((हिंसादि) ग़लत भावनाओंका अंत लानेके लिये (साधकको करुणादि) विरुद्ध भावनाओंका आश्रय (लेना चाहिये।)).
अहिंसाप्रतिष्ठायां तत्सन्निधौ वैरत्याग:। (पातंजलयोगदर्शन-2/35)
((साधक योगीके चित्तमें) अहिंसाकी स्थिरता होनेसे (उनकी) समीपमे (प्राणियों अपने स्वाभाविक) वैरका त्याग करते है।)
सत्यप्रतिष्ठायां क्रियाफलाश्रयत्वम्। (पातंजलयोगदर्शन-2/36)
(साधक योगीके चित्तमें) सत्यकी स्थिरता हो जानेसे क्रियाकी और फलकी (इच्छानुसार परिणाम प्राप्तिका) सामर्थ्य प्राप्त होता है)
देशबंन्धचित्तस्य धारणा। (पातंजलयोगदर्शन-3/1)
(ध्येयदेशमें चित्तकी स्थितिको धारणा कहते है)
स्वाध्यायादिष्टदेवतासंप्रयोग:।। (पातंजलयोगदर्शन-2/44)
(स्वाध्यायसे इष्ट देवताका दर्शन होता है।)
समाधिसिद्धिरीश्वरप्रणिधानात्।। (पातंजलयोगदर्शन-2/45)
(ईश्वरप्रणिधानसे समाधिकी सिद्धि होती है।)
स्थिरसुखमासनम्।। (पातंजलयोगदर्शन-2/46)
(स्थिर है और सुखरुप है, वह आसन है)
प्रयत्नशैथिल्यानन्तसमापत्तिभ्याम्।। (पातंजलयोगदर्शन-2/47)
(प्रयत्नोंकी संपूर्ण सिथिलतासे और अव्यक्तमें चित्तको स्थिर करनेसे (आसन सिद्धि होती है))
ततो द्वन्द्वानभिधात:।। (पातंजलयोगदर्शन-2/48)
((आसन जय होनेसे) द्वन्द्वोसे पराभव नहीं होता।)
तस्मिन सति श्वासप्रश्वासयोर्गतिविच्छेद प्राणायाम।। (पातंजलयोगदर्शन-2/49)
(उस (आसन) की (स्थिरता) होनेके उपरांत श्वासप्रश्वास गतिका जहाँ विच्छेद होता है ऐसा प्राणायाम (हो सकता) है।)
“The Pranayama that is regulating the inhale and exhale, happens only if the seeker has won over the Asana”. (Patanjal Yoga Darshan-2/49).
प्राणामायात् क्षीयते प्रकाशावरणम्।। (पातंजलयोगदर्शन-2/52)
(प्राणायामसे ज्ञानपर जो (अज्ञानरुप) आवरण होता है, वह नष्ट होता है।)
देशबन्धश्चित्तस्य धारणा।। (पातंजलयोगदर्शन-3/1)
((ध्येयके) देशमें चित्तकी स्थिर स्थितिको धारणा कहते है।)
तत्र प्रत्ययैकतानता ध्यानम्। (पातंजलयोगदर्शन-3/2)
((ध्येयके प्रदेशमें धारणाकी जो स्थिति बनी) उसमें प्रवाह की अविरतताको ध्यान कहते है।)
तदेवार्थमात्रनिर्भासं स्वरुपशून्यमिव समाधि:। (पातंजलयोगदर्शन-3/3)
(वह ध्यान जब अपने स्वरुप जैसा न रहकर मात्र ध्येयरुप और प्रकाशरुप हो जाता है, तब वह समाधि कहलाता है।)
[विजातीयवृत्तिच्छिन्ना धारणा। अविच्छिन्नं ध्यानम्। तच्च ध्येयध्यानध्यातृस्फूर्तीमत्। तत् यदा ध्येयमात्रस्फूर्तीमद्भवति तदा स: समाधि। स एव दिर्घकालव्यापी सन् सम्प्रज्ञाताख्यो योग:। स यदा ध्येयस्फूर्तिशून्यो भवति तदा असम्प्रज्ञात इति दिक्।।
त्रयमेकत्र संयम:। (पातंजलयोगदर्शन-3/4)
((जब धारणा, ध्यान और समाधि) तीनों एकत्र (एक ही विषयमें किया जाता है तब वह) संयम कहलाता है।)
व्युत्थाननिरोधसंस्कारयोरभिभवप्रादुर्भावौ निरोधक्षणचित्तान्वयो निरोधपरिणाम:।। (पातंजलयोगदर्शन-3/9)
(जिस क्षण व्युत्थान संस्कारका नाश होता है और निरोधसंस्कारका प्रादुर्भाव होता है, उस क्षणको निरोधक्षण कहते है। उस क्षण चित्त असंप्रज्ञातयोग युक्त हो जाताहै, इसको निरोध परिणाम कहते है।)
तस्य प्रशान्तवाहिता संस्कारात्।।(पातंजलयोगदर्शन-3/10)
((निरोध) संस्कार (उत्पन्न होने) से उस (चित्त) की स्थिरता संपन्न होती है।)
सर्वार्थतैकाग्रतयो: क्षयोदयौ चित्तस्य समाधिपरिणाम:।। (पातंजलयोगदर्शन-3/11)
(समाधिपरिणाम यह है कि तब चित्तकी सर्वार्थताका (जो मिले उसे ग्रहण करनेकी वृत्तिका) नाश होता है और चित्तकी एकाग्रताका (केवल परमात्माको हि विषय बनानेकी वृत्तिका) उदय होता है।)
तत: पुन: शान्तोदितौ तुल्यप्रत्ययौ चित्तस्यैकाग्रतापरिणाम:।। (पातंजलयोगदर्शन-3/12)
((चित्तमेंसे अतीतके सब संस्कारोंका नाश होकर) फिरसे अतीत और वर्तमानके चित्तका एक समान (समाधिरुप जैसा) होना एकाग्रता परिणाम है।)
एतेन भूतेन्द्रियेषु धर्मलक्षणावस्थापरिणामा व्याख्याता।। (पातंजलयोगदर्शन-3/13)
इस (पूर्वोक्त प्रतिपादन) से (पाँचो) भूतों में और (दश) इन्द्रियों में धर्मपरिणाम, लक्षणपरिणाम और अवस्थापरिणाम की व्याख्या हो गई।
क्रमान्यत्वं परिणामान्यत्वे हेतु:।। (पातंजलयोगदर्शन-3/15)
(भिन्न भिन्न परिणाम परसे भिन्न भिन्न क्रमका बोध मिलता है।)
( क्रमका भिन्न भिन्न होना, वह परिणामके भिन्न भिन्न होनेमें कारणरुप है)
मृत्तिका धर्मीका चूर्ण, पींड, घट आदि स्वरुपमें परिवर्तन होता है, उसको धर्मपरिणाम कहते है.
धर्मपरिणाम परसे अतीत, वर्तमान, अनागतका बोध हो जाता है, उसे लक्षणपरिणाम कहते है।
घट प्रतिक्षण जीर्ण होता जाता है। फिर घट नष्ट होकर फिर मृत्तिका बन जाता है। घटका प्रतिक्षण जो नया स्थितिपरिवर्तन होता है, उसको अवस्थापरिणाम कहते है।
यह सभी परिवर्तनोंमें धर्मी (मृत्तिका) में कोइ परिवर्तन नहीं होता है। वह तो यथावत ही रहती है।
(परिणामके भेद परसे क्रमके भेदका बोध मिलता है। जैसे मृत्तिका, पींड और घट, यह तीन परिणाम भेद है। इस परसे अनागत, वर्तमान और अतीतका बोध मिलता है। समयमें निरपेक्ष भेद प्रतीत नहीं होता। परिणामके भेद दिखनेसे ही समयमें भी (अनागत, वर्तमान और अतीतका) भेदकी कल्पना होती है।)
परिणामत्रयसंयमादतीतानागतज्ञानम्।
(संयमात् अतीत अनागत ) (पातंजलयोगदर्शन-3/16)
((धारणा, ध्यान और समाधि) तीनोंमें परिणाम संयम करनेसे (योगीको) अतीत और अनागतका ज्ञान (होता है)
प्रातिभाद्वा सर्वम्।।(पातंजलयोगदर्शन-3/33)
अथवा प्रातिभज्ञान से (योगी) सबकुछ (जानता है)
बन्धकारणशैथिल्यात्प्रचारसंवेदनाच्च चित्तस्य परशरीरावेश:।। (पातंजलयोगदर्शन-3/38)
((पर शरीरगमनको रोकनेवाला धर्माधर्मरुप संस्कारके) कारणरुप बन्धकी निवृत्ति होनेसे और (साथ ही समाधिबलसे) चित्त नाड़ीमें पथ संचलनका ज्ञान हो जानेसे चित्तका परशरीर प्रवेश सामर्थ्य (हो जाता है।))
समानजयात्प्रज्वलनम्।। (पातंजलयोगदर्शन-3/40)
((संयमद्वारा) समानपर जय पानेसे (योगीके शरीरमें) प्रज्वलित (अग्नि होता है।))
यह कुंडलिनी जागृति हो सक्ति है।
सत्त्वपुरुषान्यताख्यातिमात्रस्य सर्वभावाधिष्ठातृत्वं सर्वज्ञातृत्वं च।। (पातंजलयोगदर्शन-3/49)
(बुद्धिसत्त्व और पुरुषके (भेदके साक्षात्कार) मात्रसे अन्यताख्याति (विवेकख्यति होती है और) सर्वपदार्थोंपर स्वामीभाव (और) सर्वज्ञाताभाव (प्राप्त होता है।)
तद्वैराग्यादपि दोषबीज़ये कैवल्यम्।। (पातंजलयोगदर्शन-3/50)
(उस (सर्वपदार्थोंपर स्वामीभाव और सर्वज्ञाताभाव सिद्धियों या विवेकख्याति हो जाती है और उसके) उपरांत वैराग्य भी हो जानेसे दोषबीज़रुप (संस्कार या वासना) का क्षय होनेसे (पूर्वोक्त सिद्धियोंके उपरांत) कैवल्य (भी होता है।))
स्थान्युपनिमन्त्रणे संगस्मयाकरणं पुनरनिष्टप्रसंगात्। (पातंजलयोगदर्शन-3/51)
((योगीकी सिद्धिको देखकर जब) देवों सत्कारपूर्वक प्रार्थना (करते है तो योगी उसमें) संग (आसक्ति) तथा स्मय (गर्व) न करें। (क्योंकि उससे) पुन: अनिष्टकी प्राप्ति होती है।)
क्षणतत्क्रमयो: संयमाद्विवेकजं ज्ञानम्।।(पातंजलयोगदर्शन-3/52)
क्षण और उसके क्रम में संयम करने से विवेकज ज्ञान प्राप्त होता है।
तारकं सर्वविषयं सर्वथा विषयमक्रमं चेति विवेकजं ज्ञानम्।। (पातंजलयोगदर्शन-3/54)
(संसारसागर से) तारनेवाला, सर्वको विषय बनानेवाला, सर्वप्रकार से विषय बनानेवाला और क्रम रहित ( ऐसा ज्ञान) विवेकज ज्ञान है।
सत्त्वपुरुषयो: शुद्धिसाम्ये कैवल्यमिति। (पातंजलयोगदर्शन-3/55)
(जब बुद्धिकी शुद्धि (भी) परमात्मा की शुद्धिके समान हो जाती है, तो वही कैवल्य है।)(पातंजलयोगदर्शन-3/55)
(When the Intellect (of person) becomes as pure as Parmatma, that is Salvation).(Patanjal Yogadarshan-3/55).
[सत्त्वस्य बुद्धिद्रव्यस्य वृत्तिशून्यता शुद्धि:। पुरुषस्यापि तदा कल्पितभोगशून्यता शुद्धि:। एवं तयो: शुद्धिसाम्ये सति कैवल्यं भवतीति शेष:।]
(जब अविद्यादि क्लेशकी निवृत्ति हो जाती है और कर्माशयरुप संस्कार दग्धबीजरुप हो जाते है, तब उत्पन्न हुइ विवेकख्यतिसे गुणोंके अधिकारकी समाप्ति हो जानेसे, बुद्धि भी निर्गुण हो जाती है। यही बुद्धिकी पुरुषके जैसी ही शुद्धता कही जाती है। अविवेकदशामें बुद्धिकी बोधरुप जो भोगता है, वह औपाधिकरुपतासे पुरुषमें दिखाई देती है। बुद्धि आत्मा जैसी ही शुद्ध हो जानेसे बुद्धिमें साक्षीभाव आ जाता है और आत्माकी यह भ्रांतिरुप भोगताकी समाप्ति हो जाती है। यही पुरुषकी शुद्धता है। बुद्धि और पुरुष (आत्मा) की समान शुद्धि होनेसे बुद्धिमें वृत्तिशून्यता आती है, वही चित्तकी समाप्ति है। और आत्माकी भी तब प्रतिबिंबित और कल्पित भोगशून्यता सिद्ध हो जाती है। इसलिये बुद्धि और पुरुष (आत्मा) की शुद्धिकी समानता ही कैवल्य है। इति।)
निमित्तमप्रयोजकं प्रकृतिनां वरणभेदस्तु तत: क्षेत्रिकवत्। (पातंजलयोगदर्शन-4/3).
[(नश्वर) साधन प्रकृति (के पार होने) का प्रयोजक नहीं हो सकता है।उससे केवल (अविद्यारुप) प्रतिबंधक की निवृत्ति होती है, जैसे कृषक करता है।](पातंजलयोगदर्शन-4/3).
[(Ephemeral) instrument cannot be sponsor for (transcending) the Nature. Only the cessation of the obstacle (of Ignorance) is affected by it; as the farmer does.)
(Patanjal Yogadarrshan-4/3).
((धर्मादिक) निमित्त प्रकृतिके प्रयोजक नहीं है। परंतु उनसे प्रतिबंधककी निवृत्ति होती है, जैसे कृषक (खेतमें पियतके लिये अड़चनको दूर करता है तो पानी अपने आप पौधें तक पहुँच जाता है।))
कारण हि कार्यका प्रयोजक हो सकता है, कार्य कारणका प्रयोजक नहीं हो सकता।धर्मादिक निमित्त प्रकृतिके कार्य है, और प्रकृति उसका कारण है, इसलिये धर्मादिक निमित्त प्रकृतिके प्रयोजक नहीं बन सकते; वे केवल प्रकृतिके रास्तेमें पड़े प्रतिबंधकोकी निवृत्ति करदेते है, जिससे प्रकृति अपने स्वभावके अनुसार शेष काम निपटा देती है।
पर्जन्यादन्नसम्भव:। (गीता3/14). कृषक यहाँ उत्पादनन्नमें निमित्त है। तो कृषक उत्पादनकी प्रकृतिका प्रयोजक या प्रवर्तक नही है।वह तो केवल पानी पौधेके मूलतक पहुँचनेमें जो घासादि प्रतिबंधक है, उस प्रतिबंधककी केवल निवृत्ति ही करता है। तब पानी जड़ तक पहुँच पाता है और प्रकृति ही आगेका उत्पादन्नका काम करती है।
रगड़ा-पेटीश खानेसे मादगी आती है, तब रगडा-पेटीश मांदगी नामक नयी प्रकृति का प्रयोजक अथवा प्रवर्तक नहीं है; किंतु रेगडा-पेटीश, शरीरकी जो रोगप्रतिरोधकता रोगको शरीरमें प्रवेशनेसे अटकाती है; उस रोगप्रतिरोधक नामक प्रतिबंधककी निवृत्ति कर देता है। उस प्रतिबंधककी निवृत्ति हो जाने से रोग प्रवेश कर जाता है।
कर्माशुक्लाकृष्णं योगिनस्त्रिविधमितरेषाम्।। (पातंजलयोगदर्शन-4/7).
[(गुणातीत) योगीओंके कर्मों अशुक्ल अकृष्ण कर्म होते है, अन्य लोगों के कर्मों (कृष्ण कर्म, शुक्लकृष्ण कर्म, और शुक्ल कर्म ऐसे) तीन अन्य प्रकारके होते है।) (पातंजलयोगदर्शन-4/7).
[The actions of (Gunateet) Yogis are Non Shukla-Non Krishna Actions; the actions of other people are of three other types (Krishna Actions, Shukla-Krishna Actions and Shukla Actions)] (Patanjal Yoga Darshan-4/7).
ततस्तद्विपाकानुगुणानामेवाभिव्यक्तिर्वासनानाम्।। (पातंजलयोगदर्शन-4/8)
(उस (तीनप्रकारके कर्मों) से, (उस कर्मोंके कर्ताओं में), केवल उस वासनाओंका प्रादुर्भाव हो सकता है; जो उस (कर्मों) के कर्मफल देने के अनुरुप होती है।) (पातंजलयोगदर्शन-4/8)
[By those (three type of actions), only those desires (in the doers of those actions) manifest which are relevant to availing the Karmafal of those (actions)]. (Patanjal Yogadarshan-4/8)
કર્મોથી એવી જ ઇચ્છાઓ વ્યક્તિ મા પેદા થાય છે, જે ઇચ્છાઓ ની પૂર્તી કરવાથી તે વ્યક્તિને તે કર્મોના અનુરૂપ કર્મફળ પ્રાપ્ત થાય.
स्मृतिसंस्कारयोरेकरुपत्वात्।।(पातंजलयोगदर्शन-4/9)
( स्मृति और संस्कार (चित्तवृत्ति) की एकरूपता होने के कारण)(पातंजलयोगदर्शन-4/9). (It is due to the uniformity of memories and Habitual Inertia or Sanskaar (Chittavritti)) (Patanjal Yoga Darshan-4/9).
जातिदेशकालव्यवहितानामप्यानन्तर्यं स्मृतिसंस्कारयोरेकरुपत्वात्।।(पातंजलयोगदर्शन-4/9)
(जाति, देश और कालकी दृष्टिसे (संस्कारों) दूरस्थ होते हुए भी, स्मृति और संस्कारकी एकरूपताके कारण वे नज़दीक के हि है (वैसी हि उसकी असर रहती है) (पातंजलयोगदर्शन-4/9).
(Though from the point of view of specie, region and era; (Habitual Inertia or Sanskaars) being placed apart, due to the uniformity of the memories and the Habitual Inertia or Sanskaar, (the effect is created as if) they are in immediate succession). (Patanjal Yoga Darshan-4/9).
प्राणीका जैसा अनुभव वैसा उसका संस्कार, जैसा उसका संस्कार वैसी उसकी स्मृति। स्मृति तो हंमेशा नयी हि दिखती है, इसलिये जाती, देश और कालकी दूरीके कारण ढंके हुए दिखते हुए भी संस्कारोंकी असर वे नये ही है वैसी हि होती है। अश्व की योनि लाखों साल बाद जीव को प्राप्त होती है, फिर भी अश्व योनि प्राप्त होते हि, अगली बार के अश्व के संस्कार तुरंत हि प्राप्त हो जाते है, और घास खाने लगता है।
हेतुफलाश्रयालम्बने: संगृहितत्वादेषामभावे तदभाव:।। (पातंजलयोगदर्शन-4/11)
(हेतु, फल, आश्रय और आलंबनके द्वारा वासनायें इकठ्ठी (रखी जाती है।) उन (चारों) का अभाव हो जानेसे उस (वासनाओं) का (भी) अभाव (हो जाता है।)
[टीका: वासनानामनन्तरानुभवो हेतु:।तस्याप्यनुभवस्य रागादयस्तेषामविद्येति साक्षात् पारम्पर्येण च हेतुत्वम्। फलं शरीरादि स्मृत्यादयश्च। आश्रय चित्तम्।आलम्बनं यदेवानुभवस्य तदेव वासनानां शब्दादिकमिति यावत्। हेत्वादिनां अभावे तदभाव।।]
अतीतानागतं स्वरुपतोऽस्त्यध्वभेदाद्धर्माणाम।। (पातंजलयोगदर्शन-4/12)
(भूतभविष्यत (भूतों या वस्तुयें) अपने रुप सहित (वर्तमानमें विद्यमान होती) है, धर्म और कालके भेदको लेकर।)
ते व्यक्तसूक्ष्मा गुणात्मान:।(पातंजलयोगदर्शन-4/13)
(व्यतक्त (प्रत्यक्ष जगत) और सूक्ष्म (बीजरुप जगत है) वह (सब तीनों) गुणोंका ही (विस्तृत) स्वरुप है।)
(The tangible (present world) and the intangible (potential world) are the variant forms of Gunas only). (Patanjal Yoga Darshan-4/13).
परिणामैकत्वाद्वस्तुतत्त्वम्।। (पातंजलयोगदर्शन-4/14)
[(वस्तु मे रहे तीनों गुणों का) परिणाम एकरूप होने से (वस्तु का) वस्तुतत्त्व (सुनिश्चित रहता) है।)] (पातंजलयोगदर्शन-4/14).
[As there is oneness of result (of Three Gunas of an object), the objectiveness (of the object remains ensured). (Patanjal Yoga Darshan-4/14).
जैसे मृत्तिका, तंतु और दूधसे बने दिपक, वाट और तैल अलग अलग होनेपर भी तीनोंका कार्य प्रकाश एक बन शकता है, वैसे ही तीनों गुण एक वस्तुरुप हो सकते है।
वस्तुसाम्ये चित्तभेदात्तयोर्विभक्त: पन्था:।। (पातंजलयोगदर्शन-4/15)
(वस्तु (में हर वक़्त तीनों गुणोंका प्रमाण) एक समान होने के बावजूद (अलग अलग) चित्त (में रहे तीनों गुणों के प्रमाण के) भेदके कारण, उस (अलग अलग चित्तों) के (वस्तु के प्रति के व्यवहार के) तरीक़ों अलग अलग है।) (पातंजलयोगदर्शन-4/15)।
[In spite of (in) an object (the proportion of three Gunas always) being same, due to the difference of (the proportion of three Gunas in) Chitta, the ways of (dealing towards the object of) those Chittas are different.].
(Patanjal Yoga Darshan-4/15).
(एक ही स्त्रीको पति, शोक्य, कामी पुरुष और ज्ञानी के देखनेपर क्रमश: सुख, दु:ख, मोह और उदासीन होनेके भाव हो सक्ते है)
तदुपरागापेक्षित्वाच्चित्तस्य वस्तु ज्ञाताज्ञातम्।।
(पातंजलयोगदर्शन-4/17)
((वस्तुके ज्ञानके लिये) चित्तका वस्तुको ग्रहण करना आवश्यक (अपेक्षित) है। (इसलिये चित्तका ग्रहण अग्रहण होनेसे) वस्तु (भी चित्तको) ज्ञात अज्ञात रहती है।)
सदा ज्ञाताश्चित्तवृत्तयस्तत्प्रभो: पुरुषस्यापरिणामित्वात्।।(पातंजलयोगदर्शन-4/18)
(हंमेशा चित्तस्वभाव ज्ञाता है, उस (चित्तस्वभाव) के प्रभो आत्मा अपरिणामी होने के कारण।)(पातंजलयोगदर्शन-4/18).
(The knower is always the disposition of Chitta, as its ruler Atmaa being the unchangeable.)
(Patanjal Yoga Darshan-4/18).
(चित्तस्वभाव को ही दृष्टा कहा जाता है। योगदर्शन 1/3)
न तत्स्वाभासं दृश्यत्वात्।। (पातंजलयोगदर्शन-4/19)
(वह(चित्त) दृश्य होनेसे स्वप्रकाशित नहीं है।)
सब दृश्य परप्रकाशित है। दृष्टा ही केवल स्वप्रकाशित है।
चितेरप्रतिसंक्रमायास्तदाकारापत्तौ स्वबुद्धिसंवेदनम्।।(पातंजलयोगदर्शन-4/22)
(चित्त के सान्निध्य के कारण, (आत्मा में भी) उस (चित्तस्वभाव) का स्वरुप आ जाता है, ऐसी बुद्धिवृत्ति होती है।)(पातंजलयोगदर्शन-4/22).
(It becomes the intelligence that due to the proximity of Chitta, the form of that (disposition of Chitta) comes (in Atmaa also.)
(Patanjal Yoga Darshan-4/22).
द्रष्टुद्दश्योपरक्तं चित्तं सर्वार्थम्।।(पातंजलयोगदर्शन-4/23)
द्रष्टा (चित्तस्वभाव) और द्दश्य (जगत) की ऐकरुपता प्राप्त चित्त (एक परमात्मा के लिए ही नहीं बल्कि) सर्व के लिए है।
विशेषदर्शिन आत्मभावभावनाविनिवृति:।। (पातंजलयोगदर्शन-4/25)
((शरीर, चित्त, बुद्धि वग़ैरह मैं हुँ) ऐसी आत्मभाव भावनाकी ज्ञानीमें निवृति हो जाती है।)
हानमेषां क्लेशवदुक्तम्।।(पातंजलयोगदर्शन-4/28)
उस (व्युत्थान संस्कारों) का नाश क्लेशों (के नाश) की तरह कहा गया है।
प्रसंख्यानेऽप्यकुसीदस्य सर्वथा विवेकख्यातेर्धर्ममेघ: समाधि:।। (पातंजलयोगदर्शन-4/29)
(विवेकज्ञान (के उपरांत जिसको) वैराग्य भी है उसको सर्वथा विवेकज्ञान से भी धर्ममेघसमाधि प्राप्त होती है।)
तत: क्लेशकर्मनिवृति:।। (पातंजलयोगदर्शन-4/30)
(उस (धर्ममेघसमाधि) से क्लेश तथा कर्मकी निवृत्ति (होती है।)
तदा सर्वावरणमलापेतस्य ज्ञानस्यानन्त्याज्ज्ञेयमल्पम्।। (पातंजलयोगदर्शन-4/31)
तब (धर्ममेघसमाधि से) सर्व आवरणरुप मलसे रहित हुए ज्ञानकी अनंतता के सामने ज्ञेयरुप विषय बहुत अल्प दिखता है।
तत: कृतार्थानां परिणामक्रमसमाप्तिर्गुणानाम्।।(पातंजलयोगदर्शन-4/32)
(अत: (धर्ममेघसमाधिके उदय होने से) कृतार्थ हुए गुणों का (कार्योत्पादनरुप) परिणामक्रम की समाप्ति होती है।)
क्षणप्रतियोगी परिणामापरान्तनिर्ग्राह्य: क्रम:।।
(पातंजलयोगदर्शन-4/33)
[क्षण के साथ ताल्लुक़ बनाने के परिणामस्वरूप (अपने मे) हुई तबदीली को देखकर, (मानव द्वारा) महसूस किया गया (क्षणों का प्रवाह), क्रम है (जो उसे समय लगता है।)] (पातंजलयोगदर्शन-4/33).
[Seeing the modification (in himself) resulted from forging liaison with the moment, the perception (of flow of moments) felt (by the human) is sequence (which sounds to him as time).].
नया रखा हुआ वस्त्र अनेक वरसोंके बाद झीर्ण हो जाता है। झीर्णता सूक्ष्मतम, सूक्ष्मत्तर, सूक्ष्म, स्थूल, स्थूलत्तर, स्थूलतम और अंतमें वस्त्र झीर्णरुप दिखने लगता है। यह परिणाम; क्षण क्षणका जो प्रहार वस्त्रपर हुआ है, और वस्त्रने उस प्रहारका जो प्रतिकार किया है, उस प्रतिकारके परिणामके अंतमें हमें दिखने मिलता है। उस परिणामके अंतको देखकर क्षणके पूर्वोत्तर अविरत प्रवाहकी कल्पना हो जाती है। वह क्रम है, वही समय है।
पुरुषार्थशून्यानां गुणानां प्रतिप्रसव: कैवल्यं स्वरुपप्रतिष्ठा वा चितिशक्त्तिरिति।। (पातंजलयोगदर्शन-4/34)
(गुणोंकी (भोगापवर्गरुप) पुरुषार्थकी समाप्ति होनेसे (गुणोंका) अपने मूल कारण में लय हो जाना कैवल्य अथवा चेतना की स्वस्वरुपमें स्थिति है।)
(The returning to the original state of Gunas, because of absolute nonexistence of their pursuits (of usufruct and beatitude), is called Salvation, or establishing in Atmaa of Own Being ) (Patanjal Yoga Darshan-4/34).
हरिः ॐ तत्सत्। हरिः ॐ तत्सत्। हरिः ॐ तत्सत्।
Acharya Vrujlal
Hello colleagues, nice piece of writing and nice urging commented at this place, I am really enjoying by these. Fawnia Berky Klaus
You have brought up a very great details, appreciate it for the post. Latisha Bart Nicolas
This article gives clear idea in support of the new viewers of blogging, that genuinely how to do running a blog.| Honey Orazio Denbrook
Thanks designed for sharing such a good thought, article is good, thats why i have read it entirely Zonnya Jayson Felike
Pretty! This has been an extremely wonderful post. Thank you forr supplying this info. Aubrette Gustavo Nobell
Hey there! This is kind of off topic but I need some advice from an established blog. Gianina Ryan Hurlee
I am so happy to read this. This is the kind of manual that needs to be given and not the random misinformation that is at the other blogs. Appreciate your sharing this greatest doc. Myrilla Micheal Trinatte
I will immediately grab your rss feed as I can not in finding your email subscription link or e-newsletter service. Do you have any? Please permit me understand in order that I may subscribe. Thanks. Kevina Edmund Hurley
Thank you so very much for interest shown. You can email me
[email protected]
I just like the helpful info you provide on your articles. Nichol Taber Sella
I think other web-site proprietors should take this web site as an model, very clean and fantastic user genial style and design, let alone the content. You are an expert in this topic! Glynda Randolph Brittnee
Needed to post you that bit of word just to say thanks a lot as before about the beautiful advice you have shown in this article. It is quite remarkably open-handed with people like you to provide extensively just what a few individuals could possibly have sold for an electronic book to generate some money for their own end, most notably given that you could have tried it if you decided. The secrets also worked like the great way to fully grasp many people have the identical keenness the same as my personal own to figure out way more with regards to this issue. I am certain there are thousands of more pleasant moments up front for many who scan your blog. Tommi Hamlen Almeida
Hi maam/sir planning to take exam this March 18. Can I ask an updated copy of CS reviewer? and kindly send it on my e-mail ? Thank you and God Bless. Othilie Orlando Combs
My spouse and I stumbled over here from a different page and thought I might check things out. Austine Karl Erhart
When I initially commented I clicked the -Inform me when new comments are included- checkbox as well as now each time a comment is added I get 4 emails with the exact same comment. Exists any way you can eliminate me from that service? Thanks! Masha Nickola Dick
Incredible points. Sound arguments. Keep up the amazing spirit. Elsbeth Dav Benildis
Thank you so very much. Aum Namo Naraayana.
Ah, Aidee, you are incredibly sweet. Thank you so much for the kind offer!!! I think we may have figured something out, but seriously, mil gracias de todo corazon. Te mando un gran saludo y abrazo! Julina Micheil Olodort
I love it when individuals get together and share ideas. Great blog, stick with it! Moselle Artus Chelton
I enjoy reading through a post that will make men and women think. Also, thanks for allowing me to comment. Elwira Tony Jabez
Just read this I was reading through some of your posts on this site and I think this internet site is rattling informative ! Keep on posting. Carmon Hayden Seafowl
Hey! I could have sworn I’ve been to this blog before but after reading through some of the post I realized it’s new to me.
Anyhow, I’m definitely glad I found it and I’ll be book-marking and checking back often!
Hey there just wanted to give you a quick heads up.
The words in your content seem to be running off the screen in Chrome.
I’m not sure if this is a format issue or something to do
with web browser compatibility but I figured I’d post to
let you know. The design look great though! Hope you get the
issue resolved soon. Cheers
I’m truly enjoying the design and layout of your website.
It’s a very easy on the eyes which makes it much more enjoyable for me to come here and visit more often. Did you hire out a designer to create your theme?
Superb work!
Heya i’m for the first time here. I found this board and I to find It truly helpful & it helped me out a lot. I hope to provide one thing back and help others such as you aided me.
I’ve been surfing on-line greater than 3 hours lately, but I never discovered any fascinating article like yours.
It’s beautiful worth sufficient for me. In my opinion,
if all web owners and bloggers made just right content material as you did, the web will likely
be much more helpful than ever before.
Great website you have here but I was curious about if you knew of any discussion boards that
cover the same topics talked about here? I’d really love to
be a part of group where I can get comments from other experienced individuals
that share the same interest. If you have any suggestions, please let me know.
Cheers!
I needed to thank you for this wonderful read!! I definitely loved every
little bit of it. I have you bookmarked to check out new things you post…
Howdy are using WordPress for your blog platform? I’m
new to the blog world but I’m trying to get started and create my own. Do you need any html
coding expertise to make your own blog? Any help would be really appreciated!
A motivating discussion is definitely worth comment. I think that you should publish more on this
issue, it might not be a taboo subject but typically folks don’t talk
about these subjects. To the next! Kind regards!!
Thanks so much for the blog article.Thanks Again. Really Great.
Hey I know this is off topic but I was wondering
if you knew of any widgets I could add to my blog that automatically tweet my newest twitter
updates. I’ve been looking for a plug-in like this for quite some
time and was hoping maybe you would have some experience with something like this.
Please let me know if you run into anything. I truly
enjoy reading your blog and I look forward to your new updates.
Superb blog! Do you have any suggestions for aspiring
writers? I’m hoping to start my own website soon but I’m a little lost on everything.
Would you propose starting with a free platform like WordPress
or go for a paid option? There are so many
choices out there that I’m completely overwhelmed ..
Any ideas? Many thanks!
Your style is so unique in comparison to other people I have read
stuff from. Thanks for posting when you have the opportunity, Guess I’ll just bookmark this page.
Hello.This article was really remarkable, particularly because I was searching for thoughts on this matter last Saturday.
My brother recommended I might like this web site. He was totally
right. This post actually made my day. You cann’t imagine just
how much time I had spent for this information!
Thanks!
Amazing! Its in fact remarkable piece of writing, I havegot much clear idea concerning from this paragraph.